Friday, 26 January 2018

Baba mahraj ki story bisenpur

बाबा महराज की महिमा

परम पूज्य सुदिष्ट ब्रहम बाबा की दिव्य प्रेरणा से उनके पवित्र चरित्र एवं महात्म्य का यथामति यथा जनश्रुति के आधार पर वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है। श्री सुदिष्ट देव का दिव्य धाम (सुदिष्ट ब्रहम स्थली) उत्तर प्रदेश के जनपद इलाहाबाद में इलाहाबाद से मिर्जापुर जाने वाली सड़क की तरफ ३८ कि.मी. पर स्थित मेजा रोड स्टेशन से उत्तर दिशा की तरफ (१३) तेरह किलो मीटर दूर रामनगर से परानीपुर मार्ग पर बिसेन का पुरा गांव में स्थापित है। ग्राम-बिसेनपुर (मौजा- परानीपुर) मेजा थाना अंतर्गत आता है। उक्त बिसेनपुर गांव में सुदिष्ट ब्रहम देव, जिन्हे जन सामान्य लोग बाबा महाराज के नाम से पुकारते हैं का मुख्य समाधि स्थल है। इसके अलावा बाबा महाराज के अन्य चार मन्दिर बने हुये हैं, जो परानीपुर मौजा के पुरब पश्चिम एवं उत्तर दिशाओं में स्थापित है। बिसेनपुर स्थित मुख्य समाधि स्थल पर प्रत्येक रविवार को बहुत विशाल मेला लगता है, जिसमें बहुत दूर-दूर से देश एवं प्रदेश के काने-कोने से श्रद्धालूगण उमड़े चले आते हैं। शायद ही ऐसा रविवार हो जिसमें मेले में आने वाले श्रद्धालूओं की संख्या (1 लाख) से कम होती हो। आस्था एवं प्रबल विश्वास के उपर आधारित उनके विलक्षण एवं विस्मयकारी घटनायें सुदिष्ट ब्रहम परती जिसे लोग (बबा का परठ) भी कहते है। जिसका कुल रकबा ५२ बीघा है। जो आज भी अक्षुण एवं पूर्णरूप से सुरक्षित बचा हुआ है। जिस पर किसी की भी हिम्मत नही कि उक्त भूमि का इंच भर भी जमीन पर अतिक्रमण या निजी कब्जा अथवा कास्त कर सकें। यहां तक की जानबुझ कर कोई व्यथ्कत उक्त परेठ में मल त्याग अथवा पेशाब या थूक तक सकें। यदि किसी ने ऐसा किया तो उसे तत्काल दुष्परिणाम भोगने को मिला। एक नही अनगिनत आश्चर्य जनक घटनायें एवं बातें बाबा के प्रभाव के संबंध में लोगों द्वारा अनूभूत की जाती हैं। ऐसे सुदिष्ट ब्रहम बाबा के संबंध में उनके जीवन चरित्र पर प्रकाश डालने वाले तथ्य एवं कथन निम्नांकित है। बाबा की जन्मस्थली जाति गोत्र के संबंध में प्रामणिक रूप से कुछ कह पाना कठिन है। इस संबंध में कोई लिखित ऐतिहासिक संदर्भ उपलब्ध नही है। इतना अवश्य कहा जाता है कि इनका नाम श्री सुदिष्ट नारायण था तथा ये कुलीन सज्जन तपस्वी ब्राहमण कुल में उत्पन्न हुए थे। यह भी निश्चित है कि इनका जन्मस्थल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के किसी पड़ोसी जनपद विषेश रूप से प्रतापगढ़ में हो सकता है। प्रतापगढ़ जनपद के कतिपय लोगों से जनश्रुति के आधार पर वहां के सांगीपुर ब्लाक के अंतर्गत परानीपुर नाम का एक गांव भी है। हो सकता है कि वर्तमान सुदिष्ट ब्रहम बाबा की ‘शहादत के पश्चात् इनके जन्मस्थली वाले गांव के नाम को यहां के स्थानीय लोगों ने आस्था स्वरूप रख लिया हो। एक जनश्रुति के आधार पर सुदिष्ट ब्रहम बाबा प्रतापगढ़ छोड़ने के पश्चात् हण्डिया तहसील के अंतर्गत वर्तमान गांव जुड़ई का पुरा में आ गये, वहां पर निवास करने लगे। कुछ समय पश्चात् नवासा के रूप में वे मेजा तहसील अंतर्गत परानीपुर गांव में स्थाई रूप से बस गये। संभवतः परानीपूर के किसी ब्राहमण परिवार के गद्दी पर आये हो। वैसे इन्हें कहीं-कहीं पाण्डेय ब्राहमण के रूप में मानने की बात कही जाती है। परानीपुर गांव में इन्हें ५२ बीघे भूमि जो परानीपुर गांव के पूरब, पश्चिम, उत्तर दिशाओं में स्थित है, जिसे वर्तमान में सुदिष्ट ब्रहम परती या (बाबा का परेठ) कहा जाता है मिली थी। और ब्रहम सुदिष्ट नारायण उसके एक मात्र तनहा कास्तकार थे। उस समय परानीपुर गांव के जमीदार बिसेन वंशीय ठााकुर थे, जिनके जमीदारी सल्तनत को शाहीपुर स्टेट के रूप में जाना जाता था। आज भी शाहीपुर स्टेट के अवशेष एवं वंच्चजों को इलाहाबाद जनपद के तहसील हण्डिया में धनुपूर ब्लाक के अंतर्गत देखा जा सकता है। यह प्रसिद्ध क्षत्रिय वंच्च विसेन वंच्च की शाखा, मूल रूप से वर्तमान देवरिया जनपद के सलेमपुर तहसील स्थित मझौली स्टेट से संबंधित थी कहते है कि मझौली स्टेट से ही बिसेन वंच्चीय भारच्चिव नाम के महत्वाकांक्षी राजा ने भरों का राज्य समाप्त कर हण्डिया से लाक्षागृह तक फैले हुए क्षेत्र को अपने अधीन किया था तथा पास पड़ोस के राजाओं से उनका निरन्तर संघर्ष भी चलता रहता था। परानीपुर का क्षेत्र उनकी जमीदारी में राजा माण्डा से बिसेनवंच्ची योद्धा को पुरस्कार स्वरूप प्राप्त हुआ था जिसने राजा माण्डा के लिए अत्यन्त शौर्यपूर्ण कार्य किया था इस प्रकार परानीपुर का भूभाग भी शाहीपुर स्टेट के अर्न्तगत आ गया था। जहां तक सुदिष्ट ब्रहम बाबा की बात है उनका जीवन एक महातपस्वी जैसा ही था। नियमित रूप से गंगा स्नान करना संध्योपासन करना तथा एक आदर्च्च ब्राहम्णोचित कर्म ही उनकी दिनचर्या थी। एक बात और है, वे गृहस्थ जीवन के मोह से परे नही थे इसलिए प्राप्त भूमि पर खेती बारी का कार्य भी करते-कराते थे प्रायः जैसा की हो जाता है भूमिकर जिसे दुसरे शब्दों में माल गुजारी भी कहा जाता है उनके उपर एक लम्बे अर्से से बकाया हो गयी थी जिसके लिए उनको सम्मन अथवा नोटिस जमीदार की तरफ से जारी हुआ और उसने उसमाल गुजारी को अदा करने के अन्तिम मियाद भी मुकर्रर कर दी गयी। वर्तमान में जहां मुख्य सुदिष्ट ब्रहम धाम बिसेनपुर में स्थापित है वहां पर शाहीपुर स्टेट राज परिवार से जुड़े बिसेनवंशी क्षत्रिय बसे हुए थे जो आज भी है। ग्राम बिसेनपुर के क्षत्रिय जिन्हें लोग बिसेन ठाकुर भी कहते हैं ये सब लोग तत्कालीन जमीदार के सहयोगी थे। यह कहा जाता है कि मियाद बितने के पश्चात् श्री सुदिष्ट नारायण को मालगुजारी न अदा कर पाने की स्थिति में जमीन से बेदखल कर दिया जाना था परंतु बाबा की स्थिति माल गुजारी जमा करने लायक नही रह गयी थी। इसके पश्चात् ऐसी दशा में श्री सुदिष्ट ब्रहम नारायण ने वर्तमान समाधि स्थल पर बैठ कर अपनी जमीन से बेदखल न होने के लिए अन्न जल का त्याग कर आमरण अनशन शुरू करने का निश्चय किया और इसी स्थल पर ध्यान मग्न होकर बैठ गये। इस प्रकार दो चार दिन बीत गये और सत्ता के मद में डूबे जमीदारों के बहरे कानों पर कोई असर नही हुआ और न ही उक्त तपस्वी ब्राहमण को ऐसा कठोर हठ करने से रोका ही गया। कहते हैं कि तपय महिलायें देवी स्वरूपा भी हुआ करती है इसी कड़ी में इसी बिसेनपुर के बिसेन वंच्चीय नवागत बंधु ने जिसको आये दो तीन साल बीते होगे ने इस घटना को सुना और उसने उस महातपस्वी ब्राहमण को आमरण अनच्चन से विरत करने का निच्च्चय कर लिया और पुरजन तथा परिजनों की परवाह न करते हुए राज में शरबत एवं अन्य खाद्य सामग्री लेकर पूज्य बाबा के श्रीचरणो पर निवेदित किया। उस देवी स्वरूप नारी ने बाबा महाराज से अपना अनच्चन तोड़ कर अन्न जल ग्रहण करने का विनत आग्रह किया और स्वीकार न करने पर उसने स्वयं भी प्राण त्यागने का निच्च्चय सुना दिया। अन्त में बबा पसीजे और बोले बेटी तुम्हारे कहने से मैंने अपना अनषन व्रत तो तोड़ दिया किंतु ये लोग माल गुजारी के लिए जीवन से वे दखल कर देंगे इसलिए ऐसा न होने देने के लिए मै अपना प्राणोत्सर्ग (आत्म बिलदान) करूंगा और उससे यह भी कहा कि मेरे मृत शरीर को जलाया नही जाये मेरे शव को जहां-२ मेरी भूमि है वहां-२ रखते हुए इसी उपवास स्थल पर मेरा समाधि स्थल बनाया जाये उससे यह भी कहा कि मैं इस बिसेनवंशी क्षत्रियों का महा विनास करूंगा और यह आदेश देकर कि मेरी शहादत के पश्चात् मेरा निर्देश सुनाकर तुम अपने मायके चली जाना तुम मेरे स्वप्न देने पर पुनः आकर मेरी सेवा (मेरे ब्रहम चौरा समाधि स्थल की सेवा) करना तुमसे ही यह कुल पुनः आगे बढ़ेगा, ऐसा कहकर वे अपने घर चले गये। कुछ दिन बाद जमीदार के आदेश से सुदिष्ट ब्रहम बाबा को भूमि से बेदखल करने की कार्यवाही शुरू हो गयी। मुनादी हुई। ठाकुर लोग हल बैल लेकर जमीनदार के आदेशानुसार तथा कथित परेठ को जमीदार के पक्ष में इधर जोतने लगे उधर श्री सुदिष्ट नारायण महाराज ने आत्ममरण का निश्चय कर एक चमचमाती तीक्ष्ण धार वाली छुरी छिपाकर बेदखली की कार्यवाही रोकने लगे किंतु कौन सुनता था उनकी आवाज उनके आग्रह अनुरोध को ठुकरा दिया गया लाचार हो कर बाबा महाराज को अपना अतिय संकल्प मरण का सुनाना पड़ा किंतु लोग इसे कोरी धमकी मानकर जबरदस्ती जुताई करते रहे अन्त में बाबा ने वही ठाकुरो के सामने छुपायी गई छुरी निकाल अत्यन्त जोर से अपनी छााती में भोंक लिया और तड़प तड़प कर वहीं गिर पड़े और भगदड़ मच गयी और बाबा की शहादत के साथ बेदखली की कार्यवाही भी दफन हो गयी। इधर वह बहू जिसने बाबा का अनशन तुड़वाया था रोती हुई घटना स्थल पर पहुंच गयी और उपस्थित ठाकुर समुदाय को धिक्कारते हुए बाबा की अन्तिम इच्छा आदेश को बताया। इसके बाद तो ठाकुरों की हैवानियत भाग चुकी थी ब्रहम हत्या हो चुकी थी धर्म भीम ठाकुर अब रो रहे थे लेकिन इससे क्या बाबा तो बहुत दूर हो चुके थे और उनकी ब्याकुल आत्मा इस मिर्मिक दृश्य को निहार रही थी ब्रहम सुदिष्ट नारायण की अन्तिम इच्छा का पालन करते हुए उनके मृत शरीर को जहां- जहां उनकी भूमि थी वहां- वहां ले जा कर रखा गया और उन-उन स्थानों पर उनके रक्त बिन्दु भी गिरे अब वहां से सुदिष्ट, ब्रहम बाबा के शरीर को परानीपुर मध्य गांव में जहां वर्तमान जूनियर हाई स्कूल है के पीछे रखा गया और लोगों ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये कहा भी बाबा के रक्त गिरे तत्पश्चात् सुदिष्ट बहम बाबा का मृत शरीर बिसेनपुर गांव में जहां उन्होंनें अपना आमंत्रण अनशन शुरू किया था और जहां अपने जीवन का अन्तिम व्यक्त किया था, वहां पर रखा गया। अब समाधि स्थल बनने की तैयारी शुरू हो गयी गंगा जी से मिट्टी लाकर के बाबा महाराज को शरीर स्थापित कर विशाल चौरा बना दिया गया यह चैारा पूर्णतः खुले आसमान में ही था उसकी ठीक सामने पूरब दिशा की ओर एक पीपल का पेड़ था समाधि स्थल के पीेछे की ओर कुछ दूरी पर पश्चिम दिशा में एक तालाब था जो मिट्टी निकालने के कारण बना था तालाब के चारों ओर विसेन ठाकुरो का परिवार बसता था। जो आज भी बसा है। इसके पश्चात् यथा निर्देश वह आज के विसेनों की कुल जननी अपने मायके चली गयी और शायद उनके पेट में भावी बिसेन वंश का बीज भी आ चुका था तदनन्तर शुरू हुई ब्रहम ताण्डव लीला कही महामारी, कहीं सर्प दंश, कहीं आग जनी, कहीं बिजली गिरना, कहीं पेड़ से गिर जाना, इस प्रकार अनेक उपद्रव शुरू हो गये और हो गया गांव विरान। मिट गया क्षत्रियों का वह वंश बचा केवल समाधि दूर-दूर तक चर्चायें कहानियां फैलने लगी। ब्रहम अपना रूद्र रूप धारण कर चुका था। प्रमाण भूत हुआ। धिक वलम् क्षत्रिय वलम्। ब्रहम तेजो वलम् वलम्॥ धीरे-धीरे ब्रहम की क्रोधाग्नि शीतल होने लगी क्योंकि कितनी ही प्रागाहुतिया लेली गयी थी। अब शुरू हुआ सृजन लीला का उपक्रम। बाबा ने उस दिव्य देवी को जो उनकी परम आराधिका थी उसको स्वप्न दिया कि वह यहां आकर रहे और समाधि (ब्रहम चौरा) की सेवा करे। इसके पश्चात् वह देवी जिन्हें सुदिष्ट ब्रहम बाबा के कृपा फल स्वरूप पुत्र रत्न की प्राप्ति हो चुकी थी। तपस्वनी की भांति आई और बाबा की सेवा एवं पूजा में लग गयी। चौरा की पुताई धूपदीप गंगा जल चढ़ाना पुष्पांजली अर्पित करना, उनका नियमित क्रम हो गया और वंश वृ+द्धि होने लगी इस प्रकार वर्तमान बिसेनपुर गांव का क्षत्रिय बिसेन वंश सुदिष्ट ब्रहम बाबा का कृपा प्रसाद के रूप में है और यही नही वे विसेनो के कुल देव भी है। कहा जाता है कि बाबा की ख्याति बहुत दूर-दूर तक फैल चुकी थी उनके दर्शनार्थियों का ताता शुरू हो चुका था। उनके शहादत का दिन सम्भवतः रविवार ही है इसलिए रविवार के दिन भव्य मेले का आयोजन एवं ३ प्रत्याशित घटना के फलस्वरूप मेले की परम्परा टूट गयी और ऐसा लगा जैसे बाबा महाराज कुछ दिन विश्राम करना चाह रहे हों कालान्तर में सन् १९६० से ७० के दशक के बीच परानीपुर गांव के एक वयो वृद्ध ब्राहमण पण्डित जगन्नाथ प्रसाद शुक्ल (द्विज) के द्वारा श्री सुदिष्ट ब्रहम बाबा के मण्डप बनाने का दृढ़ संकल्प लिया गया और उनके उनके द्वारा धूम-धूम कर पैसे-पैसे भिक्षा प्राप्त कर बाबा के समाधि स्थल गर्भ गृह के उपर मण्डप का कार्य पूर्ण हुआ और बाबा का मेला पुनः शुरू हो गया। पण्डित जगन्नाथ प्रसाद शुक्ल (द्विज) ने सुदिष्ट ब्रहम चालीसा तथा उनके जीवन से संबंधित कथाओं को कविता के रूप में संकलित किया और जीवन पर्यन्त बाबा के प्रभाव एक महत्व का चार प्रसार करते हुए धीरे- धीरे सुदिष्ट बाबा के धाम पर श्रद्धालुओं के चढ़ावे एवं मनौतिओं के पूर्ण होन पर उपहार स्वरूप तमाम वस्तुयें निर्माण कार्य कराये जाते रहे जैसे की सर्व विदित है कि बाबा महाराज को खिचड़ी सुखी जनेउ रोटी प्रसाद नारियल ध्वज निशान खड़ाउ पीली धोती आदि चढ़ायी जाती हैं मनौती करने वाले प्रायः घण्टा एवं नगद दान भी चढ़ाते है वर्तमान में (नवल मिश्र) नाम के ब्राहमण पण्डा के रूप में कार्यरत है बाबा के धन की व्यवस्था हेतु स्थायी ग्राम वासीगण एवं उनके द्वारा नामित एक समिति कार्य प्रबंधन एवं देख रेख करती है इधर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्री सुदिष्ट ब्रहम स्थल के सुन्दरीकरण का कार्य भी शुरू हुआ था जो सम्प्रेतिबन्द है उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा तीन बारादरी का निमार्ण एवं तालाब पर पक्की सीढ़ियो का कार्य भी करता गया है जिसके लिए १२.५० लाख रूपये मंजूर भी हुए थे जिसमें अभी आधा पैसा खर्च होने के उपरांत निर्माण कार्य ठप्प पड़ा है स्थान प्रबंध समिति द्वारा बाबा महाराज के मण्डप के चारो ओर बरामदे एवं धर्मशाला तथा नाली खण्डजा यज्ञ कुण्ड आदि का कार्य भी कराया गया है दीपावली एवं जन्म अष्टमी के अवसर पर बाबा का भव्य श्रृंगार भी किया जाता है रामायाण कीर्तन पूजा पाठ का एवं यज्ञ आदि का कार्य प्रायः चलता ही रहता है तमाम दुकान दारो के द्वारा जीविको पार्जन किया जा रहा है किंतु जहां यह धाम इलाहाबाद जिले में पवित्र आस्था का केन्द्र बिन्दू बन चुका है वही पर कतिपय अराजक तत्वो द्वारा यदा कदा चोरी आदि की घटनायें भी की जाती है जिसमें दर्शनार्थिओं के वाहन आदि भी गायब हो जाते है यह बहुत बड़ी विडम्बना है जहां तक बाबा के प्रभाव की बात है उसका वर्णन शब्दों में एवं घटनाओं को गिन कर किया ही नही जा सकता क्या विद्यार्थी क्या व्यापारी क्या दीन दुखी क्या नेता राज नेता क्या विद्वान क्या शिक्षित या जन साधारण ऐसा कौन है जिसकी इच्छा बाबा न पुरी करते हो तभी तो बा7बा की दुहाई देते हुए लाखो की संख्या में लोग दौड़ते चले आते है। रविवार के दिन तो गांव के चारों ओर जिधर भी मार्गो पर दृष्टि जाती है। दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है यदि जिला प्रशासन मेले का समुचित प्रबंध करे। तो बाबा की इस दिव्य धाम की पवित्रता अछुण बनी रहेगी। उपरोक्त सुदिष्ट बाबा चरित्र को जनश्रुतियों एवं कुछ ऐतिहासिक संदर्भो एवं स्थलीय साक्ष्यों तथा राजस्व अभिलेखों में जो अब तक अंकित है, के आधार पर तथा पूज्य बाबा महाराज के दिव्य प्रेरणा से अनुभव हुआ उसे ही लिपि बद्ध किया गया है। यदि इसमें कुछ भी त्रुटि है तो मेरी अज्ञानता और यदि सत्य है तो उसका श्रेय मेरे पुज्य कुल देव बाबा महाराज का है। "Jai Baba Maharaj"

7 comments:

  1. क्या मैं आपके मंदिर आ सकता हूँ।
    बाबा की कहानी लिखनी है।
    अमित बनर्जी
    Allahabad
    मोबाइल 9450002531

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  2. जय बाबा महाराज रच्छा करो त्राहि माम त्राहि माम

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  3. Jai baba mahraj ki jai ho main bhi usi gao ka hu baba apni kripa mere or mere pariwar or sabhi ke upper banaye rakhe jai ho baba mahraj ki

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  4. jay baba mahraj ki baba apna kripa banaye rakhna

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